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प्रागितिहास इतिहास

प्रागितिहास  इतिहास के उस काल को कहा जाता है जब मानव तो अस्तित्व में थे लेकिन जब लिखाई का आविष्कार न होने से उस काल का कोई लिखित वर्णन नहीं है। इस काल में मानव-इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई जिनमें हिमयुग, मानवों का अफ़्रीका से निकलकर अन्य स्थानों में विस्तार, आग पर स्वामित्व पाना, कृषि का आविष्कार, कुत्तों व अन्य जानवरों का पालतू बनना इत्यादि शामिल हैं। ऐसी चीज़ों के केवल चिह्न ही मिलते हैं, जैसे कि पत्थरों के प्राचीन औज़ार, पुराने मानव पड़ावों का अवशेष और गुफाओं की कला। पहिये का आविष्कार भी इस काल में हो चुका था जो प्रथम वैज्ञानिक आविष्कार था

इतिहासकार प्रागैतिहास को कई श्रेणियों में बांटते हैं। एक ऐसी विभाजन प्रणाली में तीन युग बताए जाते हैं:

पाषाण युग - जब औज़ार व हथियार केवल पत्थर के ही बनते थे।
कांस्य युग - जब औज़ार व हथियार कांसे (ब्रॉन्ज़​) के बनाने लगे।
लौह युग - जब औज़ारो व हथियारों में लोहे का इस्तेमाल शुरू हो गया।

प्रागैतिहासिक काल में मानवों का वातावरण बहुत भिन्न था। अक्सर मानव छोटे क़बीलों में रहते थे और उन्हें जंगली जानवरों से जूझते हुए शिकारी-फ़रमर जीवन व्यतीत करना पड़ता था। विश्व की अधिकतर जगहें अपनी प्राकृतिक स्थिति में थीं।ऐसे कई जानवर थे जो आधुनिक दुनिया में नहीं मिलते, जैसे कि मैमथ और बालदार गैंडा।विश्व के कुछ हिस्सों में आधुनिक मानवों से अलग भी कुछ मानव जातियाँ थीं जो अब विलुप्त हो चुकी हैं, जैसे कि यूरोप और मध्य एशिया में रहने वाले निअंडरथल मानव। अनुवांशिकी अनुसन्धान से पता चला है कि भारतीयों-समेत सभी ग़ैर-अफ़्रीकी मानव कुछ हद तक इन्ही निअंडरथलों की संतान हैं, यानि आधुनिक मानवों और निअंडरथलों ने आपस में बच्चे पैदा किये थे।

भारत में पुरापाषाण काल के अवशेष तमिल नाडु के कुरनूल, कर्नाटक के हुँस्न्गी, ओडिशा के कुलिआना, राजस्थान के डीडवानाके श्रृंगी तालाब के निकट और मध्य प्रदेश के भीमबेटकाऔर छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के सिंघनपुर में भी मिलते हैं। इन अवशेषो की संख्या मध्यपाषाण काल के प्राप्त अवशेषो से बहुत कम है।

इस काल को जलवायु परिवर्तन तथा उस समय के पत्थर के हथियारो तथा औजारो के प्रकारों के आधार पर निम्न तीन भागों में विभाजित किया गया है:-

   (1)निम्नपुरापाषाण काल
   (2)मध्यपुरापाषाण काल
   (3)उत्तर या उच्चपुरापाषाण काल

1. निम्नपुरापाषाण - यह पूरापाषाण काल का लंबा समय है। इस समय मनुष्य पत्थरो से निर्मित औजार का प्रयोग करते थे। जैसे- हस्तकुठार, खण्डक, विदारणी। अधिकांश पुरापाषाण युग हिम युग से गुजरा है। निम्नपुरापाषाण स्थल भारतीय महाद्वीप के लगभग सभी झेत्रो में प्राप्त होता है। जिसमे असम की घाटी, सिंधु घाटी, बेलन घाटी और नर्मदा घाटी प्रमुख है।

2. मध्यपुरापाषाण काल- मध्यपुरापाषाणकाल मे शल्क उपकरणों का प्रयोग बढ़ गया। मुख्य औजार के रूप में पत्थर की पपड़ियों से बने विभिन्न प्रकार के फलक, वेधनी, छेदनी और खुरचनी मिलते हैं ।हमें वेधनियाँ और फलक जैसे हथियार भारी मात्रा में मिले है। 3. उच्चपुरापाषाण काल में आद्रता कम हो गयी थी तथा हिमयुग का अंतिम अवस्था थी । इस समय आधुनिक मानव होमोसेपियंस का उदय हुआ। इस काल के औजार अधिक तेज व चमकीले थे। ये औजार हमें आंध्र, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, दक्षिणी उत्तरप्रदेश और बिहार के पठार में मिले हैं।

3. ऊपरी पाषाण काल 

यह नवपाषाण क्रांति और कृषि के आगमन तक प्रारंभिक आधुनिक मनुष्यों में व्यवहारिक आधुनिकता की उपस्थिति के साथ मेल खाते हुए कुछ सिद्धांतों के अनुसार, 50,000 ( 10,000 साल पहले ) और होलोसिन की शुरुआत के बीच है , रचनात्मक रूप से आधुनिक मानव ( यानी होमो सेपियन्स ) , 200 , 000 साल पहले के आसपास अफ्रीका से बाहर उभरा है माना जाता है , हालांकि इन जीवन शैली से बहुत थोड़ा बदल पुरातन मनुष्य के मध्य पाषाण काल , लगभग 50 , 000 साल पहले , जब वहाँ एक था , जब तक कलाकृतियों की विविधता में उल्लेखनीय वृद्धि । यह अवधि पूरे एशिया और यूरेशिया में अफ्रीका से आधुनिक मनुष्यों के विस्तार के साध मेल खाती है , जिसने निएंडरथल के विलुप्त होने में योगदान दिया । ऊपरी पैलियोलिथिक में शिविर बस्तियों के रूप में संगठित बस्तियों के शुरुआती ज्ञात प्रमाण हैं , कुछ भंडारण गड्ढों के साथ । गुफाओं की पेंटिंग , पेट्रोग्लिफ्स , नक्काशी और हड्डी या हाथीदांत पर नक्काशी के साथ कलात्मक काम खिलता है ।

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