अल बेरुनी (973-1048)
एक फ़ारसी विद्वान लेखक, वैज्ञानिक, धर्मज्ञ तथा विचारक था। बेरुनी की रचनाएँ अरबी भाषा में हैं पर उसे अपनी मातृभाषा फ़ारसी के अलावा कम से कम तीन और भाषाओं का ज्ञान था - सीरियाई, संस्कृत, यूनानी। वो भारत और श्रीलंका की यात्रा पर 1017-20 के मध्य आया था। ग़ज़नी के महमूद, जिसने भारत पर कई बार आक्रमण किये, के कई अभियानों में वो सुल्तान के साथ था। अलबरुनी को भारतीय इतिहास का पहला जानकार कहा जाता था।प्रारम्भ में अलबरूनी ख़्वारिज्म के ममुनि शासक का मंत्री था क्योंकि शासक उसकी विद्वता से प्रभावित था।
अलबरुनी ने 146 क़िताबें लिखीं - 35 खगोलशास्त्र पर, 23 ज्योतिषशास्त्र की, 15 गणित की, 16 साहित्यिक तथा अन्य कई विषयों पर।
इब्न बत्तूता
इब्न बत्तूता अरब यात्री, विद्धान् तथा लेखक। उत्तर अफ्रीका के मोरक्को प्रदेश के प्रसिद्ध नगर तांजियर में १४ रजब, ७०३ हि. (२४ फ़रवरी १३०४ ई.) को इनका जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम था मुहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्न बत्तूता। इब्न बतूता मुसलमान यात्रियों में सबसे महान था। अनुमानत: इन्होंने लगभग ७५,००० मील की यात्रा की थी। इतना लंबा भ्रमण उस युग के शायद ही किसी अन्य यात्री ने किया हो। अपनी यात्रा के दौरान भारत भी आया था।इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत जिसे रिहला कहा जाता है , 14वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारियाँ देता है । 1333 ई . में दिल्ली पहुँचने पर इसकी विद्वता से प्रभावित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी या न्यायाधीश नियुक्त किया
तारानाथ (1575-1634)
तारानाथ यह एक तिब्बती लेखक था । उन्हें व्यापक रूप से इसका सबसे उल्लेखनीय विद्वान और प्रतिपादक माना जाता है।
तरानाथ का जन्म तिब्बत में हुआ था , माना जाता है कि पद्मसंभव के जन्मदिन पर । उनका मूल नाम कुन-दगा-सिनिंग-पो था, संस्कृत का समतुल्य शब्द आनंदगर्भ है। हालाँकि, उन्होंने तारानाथा को अपनाया, संस्कृत नाम जिसके द्वारा उन्हें आम तौर पर जाना जाता था, मूल्य के एक संकेत के रूप में उन्होंने एक युग में अपनी संस्कृत छात्रवृत्ति पर रखा जब भाषा की महारत तिब्बत में बहुत कम आम हो गई थी, जैसा कि एक बार हुआ था। वह अपने भारतीय शिक्षक बुद्धगुप्तनाथ को श्रद्धांजलि भी दे रहे थे । इसने कंग्युर ' तथा ' तंन्युर ' नामक ग्रंथ की रचना की । इनसे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है ।
मार्कोपोलो
यहएक इतालवी व्यापारी, खोजकर्ता और राजदूत था। उसका जन्म वेनिस गणराज्य में मध्य युग के अंत में हुआ था। अपने पिता, निकोलस पोलो (Niccolò) और अपने चाचा, मातेयो (Matteo), के साथ वह रेशम मार्ग की यात्रा करने वाले सर्वप्रथम यूरोपियनों में से एक था। उसने अपनी यात्रा १२७२ में लाइआसुस बंदरगाह (आर्मेनिया) से प्रारंभ की थी। उनकी चीन समेत, पूर्व की यात्रा का विस्तृत प्रतिवेदन ही लंबे समय तक पश्चिम में एशिया के बारे में जानकारी देने वाला स्रोत रहा है।मार्कोपोलो (1292-93ईं) वेनिस निवासी इतालवी यात्री था जिस ’ मध्यकालीन यात्रियों का राजकुमार' की उपाधि दी गई । इसका वृतांत ’द बुक ऑफ सर-मार्कोपोलो’ के नाम से हैं, जो तत्कालीन भारत के अर्थिक इतिहास की द्ष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इसमे उसने काकतीय वंश की राजकुमारी रुद्रमादेवी का उल्लेख किया है था , 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था । इसका विवरण पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है
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अल बेरुनी |
अलबरुनी ने 146 क़िताबें लिखीं - 35 खगोलशास्त्र पर, 23 ज्योतिषशास्त्र की, 15 गणित की, 16 साहित्यिक तथा अन्य कई विषयों पर।
इब्न बत्तूता
इब्न बत्तूता अरब यात्री, विद्धान् तथा लेखक। उत्तर अफ्रीका के मोरक्को प्रदेश के प्रसिद्ध नगर तांजियर में १४ रजब, ७०३ हि. (२४ फ़रवरी १३०४ ई.) को इनका जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम था मुहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्न बत्तूता। इब्न बतूता मुसलमान यात्रियों में सबसे महान था। अनुमानत: इन्होंने लगभग ७५,००० मील की यात्रा की थी। इतना लंबा भ्रमण उस युग के शायद ही किसी अन्य यात्री ने किया हो। अपनी यात्रा के दौरान भारत भी आया था।इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत जिसे रिहला कहा जाता है , 14वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारियाँ देता है । 1333 ई . में दिल्ली पहुँचने पर इसकी विद्वता से प्रभावित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी या न्यायाधीश नियुक्त किया
तारानाथ (1575-1634)
तारानाथ यह एक तिब्बती लेखक था । उन्हें व्यापक रूप से इसका सबसे उल्लेखनीय विद्वान और प्रतिपादक माना जाता है।
तरानाथ का जन्म तिब्बत में हुआ था , माना जाता है कि पद्मसंभव के जन्मदिन पर । उनका मूल नाम कुन-दगा-सिनिंग-पो था, संस्कृत का समतुल्य शब्द आनंदगर्भ है। हालाँकि, उन्होंने तारानाथा को अपनाया, संस्कृत नाम जिसके द्वारा उन्हें आम तौर पर जाना जाता था, मूल्य के एक संकेत के रूप में उन्होंने एक युग में अपनी संस्कृत छात्रवृत्ति पर रखा जब भाषा की महारत तिब्बत में बहुत कम आम हो गई थी, जैसा कि एक बार हुआ था। वह अपने भारतीय शिक्षक बुद्धगुप्तनाथ को श्रद्धांजलि भी दे रहे थे । इसने कंग्युर ' तथा ' तंन्युर ' नामक ग्रंथ की रचना की । इनसे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है ।
मार्कोपोलो
यहएक इतालवी व्यापारी, खोजकर्ता और राजदूत था। उसका जन्म वेनिस गणराज्य में मध्य युग के अंत में हुआ था। अपने पिता, निकोलस पोलो (Niccolò) और अपने चाचा, मातेयो (Matteo), के साथ वह रेशम मार्ग की यात्रा करने वाले सर्वप्रथम यूरोपियनों में से एक था। उसने अपनी यात्रा १२७२ में लाइआसुस बंदरगाह (आर्मेनिया) से प्रारंभ की थी। उनकी चीन समेत, पूर्व की यात्रा का विस्तृत प्रतिवेदन ही लंबे समय तक पश्चिम में एशिया के बारे में जानकारी देने वाला स्रोत रहा है।मार्कोपोलो (1292-93ईं) वेनिस निवासी इतालवी यात्री था जिस ’ मध्यकालीन यात्रियों का राजकुमार' की उपाधि दी गई । इसका वृतांत ’द बुक ऑफ सर-मार्कोपोलो’ के नाम से हैं, जो तत्कालीन भारत के अर्थिक इतिहास की द्ष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इसमे उसने काकतीय वंश की राजकुमारी रुद्रमादेवी का उल्लेख किया है था , 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था । इसका विवरण पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है
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